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Friday, June 28, 2013

कह नहीं पाई..

बहुत चाहती हूँ तुम्हें                                                                             
कह नहीं पाई कभी
नहीं जानती....
शर्म है, या...
कोई डर

बेइन्तहा प्यार दिया है
तुमने
बिना किसी स्वार्थ
बिना किसी उम्मीद के

हाँ,
कभी- फटकारा भी
और तिलमिला कर शायद...
हाथ भी उठा दिया
पर क्या फर्क पड़ता है,
हक है आख़िर

बांहों में भी तो भर लिया,
पलक की एक ही झपक में
जाने कितनी दफ़ा,
बुरा बनना पड़ा तुम्हें
ज़माने के आगे..
कभी मना तो नहीं किया
झिझक नहीं आई चेहरे पर

बदले में माँगा क्या..
प्यार के अलावा?
कुछ भी तो नहीं
बस प्यार और ...
साथ
अपने ही अक्स का साथ

हर दुख हँस कर सह जाना
तुम ही से तो सीखा है
तुम ही ने तो बार- 
हर बार..
गिरने पर उठना सिखाया
उठ कर आगे बढ़ना

अदा करना तो चाहती हूँ
मगर किन शब्दों में,
किस रूप में करूँ
तेरा शुक्रिया अदा

कहा तो नहीं पर
एक डर है मन में
भीतर कहीं..
एक कोने में...
दुबक कर बैठी हूँ 
अपने ही दिल के

डरती हूँ 
अपने ही ख़यालों-रुपी जाल से
मानो जकड़ सी गई हूँ
इन के बीच कहीं..

जैसे पुलिस-चोर का खेल
खेल रहे हों मेरे साथ
धमकाते हैं
खो दूँगी तुम्हें भी
कहीं खो दूँगी
और शायद ...
अपना अस्तित्व
अपना वजूद भी ..

कहा तो नहीं
बस..
कह ही नहीं सकी
कि कहीं जाना मत
प्यार करती हूँ तुमसे
बहुत प्यार, बेहद

उल्टी-सीधी बातों
मेरी नादानियों
कभी बद्तमीज़ी,
तो कभी बेरुख़ी के लिये
माफ़ी माँगना चाहती हूँ

माफ़ तो करोगी
करुणामयी हो,
नर्मदिल, और..
बड़े दिल वाली भी
जानती हूँ 
माफ़ कर दिया है तुमने
भले मैं लायक नहीं

बस इतनी गुज़ारिश है
छोड़ के जाना कभी
इतनी सी दुआ है माँ
उम्र लग जाए तुम्हें मेरी

कह नहीं पाई कभी
कि बहुत चाहती हूँ तुम्हें
अब जाना..
डर ही है ...
कहीं किसी कोने में
दिल के


5 comments:

  1. tooo good.... even awesome..... what we feel about our mom is evn somthing beyond these words.. so complicated to express in words..
    i had tears in my eyes .. truly... :(

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  2. it's a big compliment, thank yu :)

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  3. Acha h bahut..... Tune likha???:-D

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